Thursday, December 15, 2011

कल वाला

जला सा था,
की बुझा सा...
कुछ समझ नहीं आया,
थोड़ी देर तो खिड़की पे अटकी रही,
वो भटकाता रहा, मैं भटकी रही
फिर मैंने एक कागज़ में आग लगा दी,
फिर एक फूँक मारी बुझा दी,
आसमान की तरफ उठा के, ठीक उसकी बगल में रख के देखा,
तो समझ आया,
बात क्या थी!

Tuesday, November 1, 2011

चाँद है तुम्हारा प्यार

घटता है बढ़ता है,
अपनी मर्ज़ी पे चलता है...
चाँद है तुम्हारा प्यार
रात भर मुझे खिडकी से तकता है,
मेरी करवट करवट सरकता है...
जो कभी हवा परदे से छिपा लेती है,
तोह आडा टेढा सा हो, ग्रिल पे मुंह के बल लटकता है!
तकिये में मुंह डाले, एक आँख से घूरती रहती हूँ,
खो जाती हूँ,
रूठी सी, सो जाती हूँ...
झपकी लगती है...तो ख्वाब में मीठी सी थपकी देता है
अक्सर नहीं जागती,
ख्वाब जी रही होती हूँ...
तोह गूम सा रात भर भटकता है
चुभता नहीं, सोने देता है,
कभी दुखता है तो रोने देता है,
कभी लगता है आँखों में आँखें डाले,
सिर्फ मेरा है, मेरे लिए ही तो है...
फिर नज़र फिराती हूँ,
तो औरों की आँखों में वो ही पाती हूँ,
कैसे सिर्फ मेरा है? मेरे लिए है?
नज़र का धोखा है तुम्हारा सुरूर,
ये बेवजह सा गुरूर ...
की मेरा है, सिर्फ मेरे लिए है...
याद आया...चाँद है तुम्हारा प्यार!

शरारतों में तड़पाता है...
जब दिन भर भूखी-प्यासी होती हूँ,
बादलों में छिप जाता है

पूरनमासी पे यूँ खुल के बरसता है...
की हर समुन्दर छूने को तरसता है,
जलता है न... रात भर जलता है मुझसे...
बगल में अमावस छिपाए रखता है...
हर बात पे "अच्छा चलता हूँ" कहने को तैयार
समझी हूँ, चाँद है तुम्हारा प्यार

लेकिन एक बात है...
काली रात की सियाही में डूबता नहीं,
बरसातों में धुंधलाता है, ऊबता नहीं
एक कोने में, नज़र आता रहता है,
वोही एक कोना तो नज़र आता है
सुना है जन्नत है वहाँ, जो मरता है...वहीँ जाता है
मैंने तो वहीँ घर बना रखा है,
वो देखो, यहाँ से दिखती है दीवार...
मुझे तोह दिन में भी दिखती है...
चाँद है तुम्हारा प्यार

लाख दाग हैं,
लाखों मील दूर है,
हर रात का होना, आना, रुकना, बीत जाना...
सिर्फ इसका कुसूर है
सबको चाहिए थोडा थोडा,
सबको मिला है थोडा थोडा
कभी आधा-अधूरा, कभी पूरे से भी पूरा
जितना मिलता है रख लेती हूँ,
उँगलियों पे गिन गिन के,
चाँद है तुम्हारा प्यार।
chaand hai tumhara pyaar,

Tuesday, September 20, 2011

भाग रही थी...

khwaab se jagi thi shayad, achanak...
meri aankhon ke aage se duniya bhaag rahi thi
haan main jaag rahi thi,
kuchh der baad mud ke dekha toh kya dekha,
thame hue thhe lamhe, ruka hua tha sab,
aur main akeli bhaag rahi thi
iss baar sach, main jaag rahi thi,
khwaab se jagi thi shayad, achanak

Monday, August 8, 2011

जिस पार तुम मिले हो

उम्र में जितने साल जुड़ते हैं,
उतने तुम घटते हो
...
अजीब सिलसिले हो,
उम्र के जिस पार तुम मिले हो...

न ढूँढा तुम्हें, न पाया कभी
छिपाया कभी, दिखाया कभी
के जैसे कमाई हो सारे जनम की
या जैसे जनम भर के गिले हो,
उम्र के जिस पार तुम मिले हो...

अल्हड होते हम, तो हाथ थामती, भगा ले जाती
बचपन होते हम, तो सबसे लडती, छीन के बैठ जाती
बूढ़े होते तो, सहारे के नाम पे, तुमसे झूल जाती
इस बरस, इश्क इस कदर,
कि हर उम्र पार कर निकले हो,
उम्र के जिस पार तुम मिले हो...

जो साथ चले तो, अकेला कर दिया...
अब क्या करूँ, कहाँ जाऊं?
पीछे मुडूं तो भी, 'वक़्त से पहले' कैसे पहुँच जाऊं?
सालों पहले की तस्वीर में मुस्कुराऊं?
या 'सालों पहले ' की सालगिरह, अकेले मनाऊं?
मन तो है, कि तुम्हारे कल में शामिल होकर,
कल फिर मिल जाऊं
लेकिन कल और कल तो दो सिरे हैं,
तो उधेड़बुन छोड़ दूँ , दोनों में सिल जाऊं
यूँ सिलूं, कि छिल जाऊं...
यूँ छिलूं कि मिल जाऊं
यूँ मिलूं कि ये लगे कि साथ तुम मिले हो,
मेरे साथ तुम छिले हो...
उम्र के जिस पार तुम मिले हो

इस पार मिले हो , उस पार मिले हो
उम्र के जिस पार तुम मिले हो

Sunday, June 26, 2011

शामें...

ये जो बरस रही हैं आज खुल के,
बूँदें नहीं हैं,
वो कई शामें हैं...जो तेरे बिन गुजारी हैं...

Tuesday, April 12, 2011

ख्वाब खाली करने का क्या लोगे?!

जब मर्ज़ी हो आते जाते हो,
वक़्त बेवक्त छत पर खड़े सीटियाँ बजाते हो,
मैं नज़रें बचा बचा के निकलती हूँ,
तोह भी पीछे से आवाजें लगाते हो,
मोहल्ले भर में बदनाम कर दोगे,
बोलो, ख्वाब खाली करने का क्या लोगे?

तुम ऐसे बाज न आओगे,
जानती थी, फिर भी रहने दिया...
न दस्क्ताखत, न कोई लिखत पढ़त,
न कोई रक़म, फिर भी बेशरम से तुम हो
कि जाने का नाम ही नहीं लेते,
मेरे रहमोकरम पर तुम हो,
क्यूँ ये मान नहीं लेते?
जिद्दी थे, जिद्दी रहोगे,
बोलो ख्वाव खाली करने का क्या लोगे?

कल उस सफ़ेद कमीज़ में,
अचानक हकीकत से लग रहे थे,
उफ़ क्या लग रहे थे,
मुस्कुरा भी रहे थे,
क्यूंकि हमेशा कि तरह ठग रहे थे!
आज तोह बच गए बच्चू,
संभालना, कल तुम भी फंसोगे,
अब भी मान जाओ,
बोलो ख्वाब खाली करने का क्या लोगे?

चले जाओगे तो चैन आएगा,
न छत टपकेगी आँखों से,
न कोई मेरे होठों से मुस्कुराएगा...
न कोई हंसेगा, न ठगेगा, न गायेगा, न सताएगा,
बरसों बाद मेरा ख्वाब... सिर्फ ... मेरा ख्वाब रह जायेगा
बोलो न, ख्वाब खाली करने का क्या लोगे?