जला सा था,
की बुझा सा...
कुछ समझ नहीं आया,
थोड़ी देर तो खिड़की पे अटकी रही,
वो भटकाता रहा, मैं भटकी रही
फिर मैंने एक कागज़ में आग लगा दी,
फिर एक फूँक मारी बुझा दी,
आसमान की तरफ उठा के, ठीक उसकी बगल में रख के देखा,
तो समझ आया,
बात क्या थी!
Thursday, December 15, 2011
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