Tuesday, November 1, 2011

चाँद है तुम्हारा प्यार

घटता है बढ़ता है,
अपनी मर्ज़ी पे चलता है...
चाँद है तुम्हारा प्यार
रात भर मुझे खिडकी से तकता है,
मेरी करवट करवट सरकता है...
जो कभी हवा परदे से छिपा लेती है,
तोह आडा टेढा सा हो, ग्रिल पे मुंह के बल लटकता है!
तकिये में मुंह डाले, एक आँख से घूरती रहती हूँ,
खो जाती हूँ,
रूठी सी, सो जाती हूँ...
झपकी लगती है...तो ख्वाब में मीठी सी थपकी देता है
अक्सर नहीं जागती,
ख्वाब जी रही होती हूँ...
तोह गूम सा रात भर भटकता है
चुभता नहीं, सोने देता है,
कभी दुखता है तो रोने देता है,
कभी लगता है आँखों में आँखें डाले,
सिर्फ मेरा है, मेरे लिए ही तो है...
फिर नज़र फिराती हूँ,
तो औरों की आँखों में वो ही पाती हूँ,
कैसे सिर्फ मेरा है? मेरे लिए है?
नज़र का धोखा है तुम्हारा सुरूर,
ये बेवजह सा गुरूर ...
की मेरा है, सिर्फ मेरे लिए है...
याद आया...चाँद है तुम्हारा प्यार!

शरारतों में तड़पाता है...
जब दिन भर भूखी-प्यासी होती हूँ,
बादलों में छिप जाता है

पूरनमासी पे यूँ खुल के बरसता है...
की हर समुन्दर छूने को तरसता है,
जलता है न... रात भर जलता है मुझसे...
बगल में अमावस छिपाए रखता है...
हर बात पे "अच्छा चलता हूँ" कहने को तैयार
समझी हूँ, चाँद है तुम्हारा प्यार

लेकिन एक बात है...
काली रात की सियाही में डूबता नहीं,
बरसातों में धुंधलाता है, ऊबता नहीं
एक कोने में, नज़र आता रहता है,
वोही एक कोना तो नज़र आता है
सुना है जन्नत है वहाँ, जो मरता है...वहीँ जाता है
मैंने तो वहीँ घर बना रखा है,
वो देखो, यहाँ से दिखती है दीवार...
मुझे तोह दिन में भी दिखती है...
चाँद है तुम्हारा प्यार

लाख दाग हैं,
लाखों मील दूर है,
हर रात का होना, आना, रुकना, बीत जाना...
सिर्फ इसका कुसूर है
सबको चाहिए थोडा थोडा,
सबको मिला है थोडा थोडा
कभी आधा-अधूरा, कभी पूरे से भी पूरा
जितना मिलता है रख लेती हूँ,
उँगलियों पे गिन गिन के,
चाँद है तुम्हारा प्यार।
chaand hai tumhara pyaar,

No comments: