Wednesday, May 13, 2009

कगार पे...

पैने चाकू की धार पे
किसी तीर पे तलवार पे
लहरों के गुबार पे
हवाओं के खुमार पे
barasne के aasaar पे
कांच की दीवार पे
मिटटी की दरार पे

bematlab हुए bekaar पे
bujhte हुए deedaar पे
एक आखिरी हुंकार पे
किसी पीर की मजार पे
मैं hun अब ...
कगार पे


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